छठ पूजा | When did Chath Pooja start and what is the history behind it?

छठ पूजा (Chath Pooja) सूर्य की आराधना का महापर्व है। सूर्य षष्ठी व्रत (Surya Shashti Vrat) होने के कारण इसे छठ (Chhath) कहा जाता है। कभी देश के एक छोटे से हिस्से का पर्व रहा छठ अब भारत में ही नहीं पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है। आइये इस लोक आस्था का महापर्व छठ (Aastha Ka Mahaparv Chhath) के इतिहास के बारे में जानते है।

प्रियंवद और मालिनी की कहानी


पुराणों के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो।’ राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत (Chath Pooja) किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

राम-सीता ने की सूर्य की पूजा


एक मान्यता के मुताबिक, लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को माता सीता और भगवान राम ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।

सूर्यपुत्र कर्ण ने शुरू की सूर्यदेव की पूजा


एक अन्य मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में हुई थी छठ पर्व की शुरुआत । सबसे पहले कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परमभक्त थे। वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा (आशीर्वाद) से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

पांडवों को वापस मिला राजपाट


महापर्व छठ के बारे में एक और कथा भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।

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